प्रार्थना
मुझे गुरु देव चरणों में लगा लोगे तो क्या होगा?
भटकती सुर्त को पावन बना दोगे तो क्या होगा?
न समरथ तुम सदृश कोई है आया दृष्टि में मेरे।
शरण में इससे आया हूॅ बचा लोगे तो क्या होगा।
तुम्हारे द्वार से कोई कभी खाली नहीं जाता।
मेरी झोली भी भर करके उठा दोगे तो क्या होगा।
दयालु दीन बन्धु नाम तेरे लोग कहते हैं।
दया कर तुच्छ सेवक यदि बना लोगे तो क्या होगा।
जानता हूं कि उसके योग्य भी मैं हूं नहीं स्वामी।
हो पारस लौह को कंचन बना दोगे तो क्या होगा।
बहुत बीती रही थोड़ी वो यह भी जाने वाली है।
उस अन्तिम स्वांस लौं अपना बना दोगे तो क्या होगा।
काटो जन्म मरण के फेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
मेरे डोले भंवर बिच नैया प्रभु बन जाओ आप खिवैया।
मेरी तुम्हीं सांझ सबेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
तुम युग-युग अन्दर आये, मोह नींद से जीव जगाए।
काटो जन्म मरण के फेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
हम अधम जीव अभिमानी, तेरी भक्ति ना हमने जानी।
मैंने किये हैं पाप घनेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
उन हकीमों ने कहा यों बोलकर। कहते थे दावे किताबे खोलकर।
यह दवा हरगिज न खाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी।
जर सिकन्दर का यहीं सब रह गया। मरते दम लुकमान भी ये कह गया।
यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी।
ऐ मुसाफिर क्यों बसरता है यहां। यह किराए पर मिला तुमको मकां।
कोठरी खाली करा ली जाएगी, बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
होगा जम लोक में जब जब तेरा हिसाब। कैसे मुकरोगे बताओ ऐ जनाब।
जब बही तेरी निकाली जाएगी। बिन मुहूरत के उठाली जायेगी।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
मन लागो मेरो यार फकीरी में।
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में।
प्रेम नगर में रहनि हमारी,भलि बनि आयी सबूरी में।
हाथ में कुन्डी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में।
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में।
कहे कबीर सुना भई साधो, साहब मिले सबूरी में।
इतनी शक्ति मुझे दो मेरे सतगुरु, तेरी भक्ति में खुद को मिटाता चलूं।
चाहे राहों में कितनी मुसीबत पड़े, फिर भी तेरा दिया गीत गाता चलूं।
दूसरों के मदद की जरूरत नहीं, मुझको केवल तुम्हारी मदद चाहिए।
डगमगाये न मेरे कदम राह में, नाम तेरे का डंका बजाता चलूं।
नाव बोझिल मेरे पूर्व के पाप से, सो न जाऊं यही डर सताता मुझे।
चाह मुझको नहीं धर्म वा अर्थ की, काम व मोक्ष की भी जरूरत नहीं।
धूल चरणों की मिलती रहे उम्र भर, तेरी महिमा निरन्तर सुनाता रहूं।
इतना वरदान दे दो मेरे देवता, खुद जगूं और जगत को जगाता चलूं।
मेरे जैसे अनेकों मिलेंगे तुम्हें, पर हमारे लिए तो तुम्हीं एक हो।
वैसे उलफत की मस्ती रहे हर घड़ी, तेरे कदमों में सिर को झुकाता चलूं।
मुझको गैरों के रिस्तों से क्या वास्ता, सिर्फ रिस्ता तुम्हारा निभाता चलूं। इतनी।
मन तू भजो गुरु का नाम। टेक।
दया मेहर से नर तन पाया, मत करना अभिमान।
इक दिन खाली पड़ा रहेगा, जाई बसे षमषान।। मन तू...
जो धन तुझको दिया गुरु ने, इससे कर कुछ काम।
अन्त समय यूं ही लुट जाएगा, संग न जाई छदाम।। मन तू..
यह संसार रैन का सुपना, आय किया विश्राम।
चार दिना के संगी सब हैं, अन्त न आवें काम।। मन तू...
तते चेत करो सतसंगत, भजन करो आठो याम।
यही भजन तेरे संग चलेगा, पावेगा आराम।। मन तू...
दया मेहर सतगुरु से लेकर, चलो त्रिकुटी धाम।
काल करम से बंधन छूटे, मिले पुरुश सतनाम।। मन तू..
धाम अपने चलो भाई। पराये देश क्यों रहना।।
काम अपना करो जाई। पराये काम नहिं फसना।।
नाम गुरु का सम्हाले चल। यही है दाम गठ बंधना।।
जगत का रंग सब मैला। धुला ले मान यह कहना।।
भोग संसार कोई दिन के। सहज में त्यागते चलना।।
सरन सतगुरु गहो दृढ़ कर। करो यह काज पिल रहना।।
सुरत मन थाम अब घट में। पकड़ धुन ध्यान घर गगना।।
फंसे तुम जाल में भारी। बिना इस जुक्ति नहीं खुलना।।
गुरु अब दया कर कहते। मान यह बात चित धरना।।
भटक में क्यों उमर खोते। कहीं नहिं ठीक तुम लगना।।
बसो तुम आय नैनन में। सिमट कर एक यहां होना।।
दुई यहां दूर हो जावे। दृष्टि ज्योति में धरना।
श्याम तजि सेत को गहना। सुरत को तान धुन सुनना।।
बंक के द्वार धंस बैठो। तिरकुटी जाय कर लेना।।
सुन्न चढ़ जा धसो भाई। सुरत से मानसर न्हाना।।
महासुन चैक अंधियारा। वहां से जा गुफा बसना।।
लोक चैथे चलो सज के। गहो वहां जाय धुन बीना।।
अलख और अगम के पारा। अजब एक महल दिखलाना।।
वहीं जाय स्वामी से मिलना। हुआ मन आज अति मगना।।
तुम नाम जपन क्यों छोड़ दिया।
क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा, सत्य बचन क्यों छोड़ दिया।
झूठे जग में जी ललचा कर, असल वतन क्यों छोड़ दिया।
कौड़ी को तो खूब सम्हाला, लाल रतन क्यों छोड़ दिया।
जिन सुमरिन से अति सुख पावे तिन सुमरिन क्यों छोड़ दिया।
खालस एक सतगुरु भरोसे, तन मन धन क्यों न छोड़ दिया।
कर ले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिन्दगानी में।
मेहमान जवानी जाती है, फिर लौट कभी नहीं आती है।
हे मूढ़ इसे मत खो देना, तू किस्से और कहानी में। कर ले..
सौभाग्य यह नर तन पाई है ,बड़े भाग जवानी आई है।
भगवान इसी में मिलते हैं ,क्यों ढूंढे पत्थर पानी में।
तू इससे खोज गुरु की कर ,मिल जायें तो न किसी से डर।
गुरु ही सब कुछ के दाता हैं ,सुन ले क्या कहते बानी में।
क्यों इसको पाकर फूल रहा निज कर्तव्यों को भूल रहा।
इन भोगों से मुख मोड़ देख, फिर फर्क मूर्ख क्या ज्ञानी में।
ज्ञानी ईश्वर का प्यारा है, सेवक गुरु भक्त दुलारा है।
जो गुरु कहते हैं मान उसे, कर भक्ति इस मर्दानी में।
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, क्यों मोह निशा में सोवत है।
जो सोवत है वह खोवत है, जो जागत है वो पावत है।
तू नींद से अंखियां खोल जरा, गुरुदेव से अपने नेह लगा।
यह प्रीत करन की रीति नहीं, गुरु जागत हैं तू सोवत है।
अनमोल मिला यह तन, गिन कर स्वांसों की पूंजी पाया।
इसमें कुछ कार्य करो अपना तू व्यर्थ समय क्यों खोवत है।
उत देख समाधि गुरु की टूटी, भक्तों ने दर्शन पायां।
तू आलस में क्यों पड़ा हुआ अपने हित की नहीं सोचत है।
बालापन तरुण अवस्थायंे, तू गफलत में बर्बाद किया।
सुध आज नहीं यदि करता है, तो नाव तुम्हारी डूबत है।
गुरु जयगुरुदेव जगाय रहे प्यारे उठ कार्य करो अपना।
यदि आज न काज किया अपना, फिर कर्मभार सिर ढोवत है।
कहें जयगुरुदेव पुकार, जमाना बदलेगा।
सुनते जाना सभी नर-नारि, जमाना बदलेगा।।
छोटे-बडे़ जितने पद-अधिकारी, सब कोई होंगे शाकाहारी।
बन्द हो जाएगा मांसाहार, जमाना बदलेगा।।
मांस, मछली, अण्डा जो सेवन करेंगे, ताड़ी, शराब, भांग-गांजा पियेंगे।
उनका पद छीन लेगी सरकार, जमाना बदलेगा।।
एम.पी., एम.एल.ए. और मंत्री, मिनिस्टर, सभी लोग होंगे शाकाहारी कट्टर।
बन्द होगा सभी दुराचार, जमाना बदलेगा।।
विदेशी बैंक में जो धन हैं छिपाए, वापस छिहत्तर सन् तक लायें।
नहीं पछतायेंगे सिर मार, जमाना बदलेगा।।
बन्द हो जाये हड़ताल, तोड़फोड़, आन्दोलन, बन्द हो जाये परिवार नियोजन।
बदल जाएगा सभी कारोबार, जमाना बदलेगा।।
नग्न सिनेमें बन्द किए जाएंगे, पुलिस सिपाही वेतन तीन सौ पायेंगे।
सभी बन्द हो चोरी, व्यभिचार, जमाना बदलेगा।।
दिल्ली से राजधानी हटेगी, यू.एन.ओ. भारत में चलेगी।
निर्णय लेने आएगा संसार, जमाना बदलेगा।।
राष्ट्रभाषा होगी संस्कृत और हिन्दी, रिश्वतखोरी पे लग जाएगी पाबंदी।
फैल जाएगा सबमें सदाचार, जमाना बदलेगा।।
कृषकों के कर्ज माफ हो जाएंगे, प्राइमरी अध्यापक वेतन तीन सौ पायेंगे।
होगा बच्चों में भारी सुधार, जमाना बदलेगा।।
बन्द हो जाएगा गऊओं का कटना, कोई नहीं होगी अनैतिक घटना।
मांस-मदिरा का बन्द हो बाजार, जमाना बदलेगा।।
काॅलेज से निकल छात्र नौकरी को पायेंगे, वृद्ध व अपाहिज पैसा राजकोष से पायेंगे।
सुखी होगा सभी परिवार, जमाना बदलेगा।।
आठ रूपया रोज मजदूरी मिलेगी, राष्ट्रपति चुनाव सीधे जनता करेगी।
जो कि हैं देश के कर्णधार, जमाना बदलेगा।।
सत्य और अहिंसा की होड़ लग जाएगी, चोरी, ठगी, झूठ की निशानी मिट जाएगी।
सब हों पूर्ण निरामिषहार, जमाना बदलेगा।।
साधन, भजन की सब करेंगे कमाई, मांसाहारियों की हो जाएगी सफाई।
वर्षा, सूखा पडे़गा अकाल, जमाना बदलेगा।।
परजा बहुत मरेगी जग में, लाशें पड़ी सडेंगी घर-घर में।
उठाने वाले मिलेंगे न यार, जमाना बदलेगा।।
पूरब-पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, छिड़े लड़ाई आए दुर्दिन।
भारी संख्या में होगा नरसंहार, जमाना बदलेगा।।
अन्न का दाना नहीं मिलेगा, टैक्स अभी और ज्यादा बढे़गा।
धर्म जल्दी से लो अब धार, जमाना बदलेगा।।
सुनते जाना सभी नर-नारि जमाना बदलेगा।
कहैं जयगुरुदेव पुकार, जमाना बदलेगा।
जय गुरु देव जय गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव । टेक।
मेरे माता पिता गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
सब देवन के देव गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
तिनके चरण कमल मन सेव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
जीव काज जग आये गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
अपना भेद बताये गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
सत्य स्वरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
अलख अरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
अगम स्वरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
पुरुष अनामी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
सबके स्वामी आप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
उनकी शरण मेरे मन लेव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
कोटि-कोटि करूं वन्दना, अरब खरब परणाम।
चरण कमल विसरूं नहीं, जय गुरु देव अनाम।।
बता दो प्रभु तुमको पाउं मैं कैसे? विमुख होके सन्मुख, अब आउं मैं कैसे?
विषय वासनायें निकलती नहीं हैं, ये चंचल चपल मन मनाउं मैं कैसे?
कभी सोचती तुमको रोकर पुकारूं, पर ऐसा हृदय को बनाउं मैं कैसे?
प्रबल है अहंकार साधन न संयम, ये अज्ञान अपना मिटाउं मैं कैसें?
कठिन मोह माया में अतिशय भ्रमित हूं, गुरु बिना दया पार पाउ मैं कैसे?
हृदय दिव्य आलोक से जो विमल हो, विनय किस तरह की सुनाउ मैं कैसे?
दयामय तुम्हीं मुझ पतित को सम्हारो, मैं कितनी पतित हूं दिखाउं मैं कैसे?
बज रहा काल का डंका, कोई बचने न पायेगा।
बचेगा साधुजन कोई जो संत से लव लगायेगा।
बचेंगे सत्य का डंका है जिसने हाथ गह पकड़ा।
काल विश्वास धाती और झूठों को चबायेगा।
बचेंगे वे जो पर उपकार में, तन धन लगायेंगे।
बचेगा अब न अन्यायी, जो जीवों को सतायेगा।
आज वह एक भी उस काल के मुख से न बच सकता।
दीन जीवों की खलड़ी नोच कर खाया जो खायेगा।
मांस खोरों व मदिरा पान करने वालों, सुन लेना।
तुम्हारा मांस अब कोई गीध कौवे, न खायेगा।
बचेंगे वे भरोसा जिनको, मेहनत की कमाई का।
बचेगा वह नहीं हक गैर का जो छीन खायेगा।
बचेगा साधु जिसने इन्द्रियों को साध रखा है।
बहिर मुख इन्द्रियों का दास अपना सब लुटायेगा।
बचेगा वह शरण पूरे गुरु की, जिसने धारण की।
दया सागर मेरे गुरुदेव, अब मुझको बचा लेना।
बचाने वाला पाकर क्यों भटकने कोई जायेगा।
मिलता है सच्चा सुख केवल, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
यह बिनती है पल पल छिन-छिन, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मेें।
चाहे बैरी कुल संसार बने, चाहे जीवन मुझ पर भार बने।
चाहे मौत गले का हार बने,रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
भगवान तुम्हारे चरणों में, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
चाहे संकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों तरफ अंधेरा हो।
पर मन नहीं डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे अग्नि में मुझे जलना पडे़। चाहे कांटों पर मुझे चलना पड़े।
चाहे छोड़ के देश निकलना पडे़, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
जिव्हा पर तेरा नाम रहे, यह याद सुबह और शाम रहे।
मेरी निष्ठा आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
भगवान तुम्हारे चरणों में, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
गुरू चरणों में अपने लगा लीजै। मेरे भाग्य को स्वामी जी जगा दीजै।
मो सम पापी जगत कोउ नाहीं, मेरे पापों की गठरी जला दीजै।
काम क्रोध मद लोभ सतावे, इन दुष्टों को स्वामी जी भगा दीजै।
काल और माया हमें भरभावे, इन दोउ से प्रभु जी बचा लीजै।
तुम्हरे दरश की ये अंखिया हैं प्यासी, दर्शन देके प्यास बुझा दीजै।
बैन सुनन को श्रवण मेरे व्याकुल, अमृत भरी बाणी सुना दीजै।
उड़ जा रे पंछी, ये अपना देश नहीं बेगाना।
इत उत सदा घूमता डोला, करता मेरा तेरा।
बहुत डार पर किया बसेरा, बीते शाम सवेरा।
शांति न तिल भर अब लौं पाये, लगा न ठीक ठिकाना।
समझ रहा है जिसको अपने होंगे वही पराये।
तुझसे सगरे घृणा करेंगे, पास न कोई आये।
तन घन शक्ति हीन परबस कर, मीज मीज पछताना।
जिस नगरी में करे बसेरा, तेरी नहीं पराई।
इसका मालिक एक दिन तुमको, सोटन मार भगाई।
उस दिन रक्षक कोई न होगा, फिर रो रो यह कहना।
कृपा किया गुरुदेव ने तुम पर, दे दिया राह रकाना।
अब भी चेतो चढ़ो अधर में सच्चा जहाँ ठिकाना।
जयगुरुदेव वचन मानो अब नहिं पीछे पछताना।
देख सामने स्वेत बिन्दु में सतगुरु दियो निशाना।
वही राह है प्रभु मिलन की पंख बिना उड़ जाना।
निश्चय एक दिन पहुंच आयेगा अपने घर सच माना।
कब तक रहोगे रूठे, बिनती सुनो हमारी,
कुछ तो हमें बता दो, क्या भूल है हमारी।
सब लोक लाज छोड़ा, एक गुरु से नाता जोड़ा,
मुख मोड़ आप बैठे, बिगड़ी दशा हमारी।
पापी हृदय पिघल कर, आंखों से निकल आया,
इन आंसुओं की माला, लो भेंट है तुम्हारी।
पतितों को तारते हो, पापों की क्षमा करके,
क्यों हो तू गुरुवर रूठे, आयी हमारी बारी।
मैं भिक्षु हूॅ तुम्हारा, दाता हो स्वामी मेरे,
खाली न मुझको भेजो, होगी हंसी तुम्हारी।
मेहर की नजर करो मेरी ओर, दया की नजर करो मेरी ओर।
निशि दिन तुम्हें निहारूं सतगुरु, जैसे चन्द्र चकोर।
जानू न कौन भूल हुई तन से, लियो हमसे मुख मोड़।
बालक जानि चूक बिसराओ, आया शरण अब मैं तोर।
सदा दयालु स्वभाव तुम्हारा, मोरि बेरिया कस भयो कठोर।
शरणागत की लाज न राखो, मोसो पतित अब जाये केहि ओर।
अबकी बार उबार लेव जो, फिर न धरब पग यहि मगु ओर।
सतगुरू सतनाम, तुमको लाखों प्रणाम।
कोटिन सूरज चांद सितारे, रोम रोम में करे उजारे।
सत पुरूष करतार तुमको लाखों प्रणाम।।
अरबों सूरज चांद सितारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अलख पुरूष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।।
खरबों सूरज चांद सितारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अगम पुरूष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।
नील नील शशि भानु व तारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अनामी पुरुष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।।
जयगुरुदेव दयाल, तुमको लाखों प्रणाम।।
गुरूदेव तुम्हारे चरणों में, सतकोटि प्रणाम हमारा है।
मेरी नैया पार लगा देना, कितनों को पार उतारा है।
मैं बालक अबुध तुम्हारा हूॅं, तुम समरथ पिता हमारे हो।
मुझे अपनी गोद बिठा लेना, दाता लो भुजा पसारा है।
यद्यपि संसारी ज्वालायें, हम पर प्रहार कर जाती हैं।
पर शीतल करती रहती है, तेरी शीतल अमृत धारा है।।
जब आंधी हमें हिला देती, ठंडी जब हमें कंपा देती।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की, दे जाती हमें सहारा है।।
कुछ भुजा उठाकर कहते हो, कुछ महामंत्र सा पढ़ते हो।
गद्-गद् हो जाता हूं भगवन, मिल जाता बड़ा सहारा है।
इस मूर्ति माधुरी की झांकी, यदि सदा मिला करती स्वामी।
सौभाग्य समझते हम अपना, कौतूहल एक तुम्हारा है।।
मैं बारम्बार प्रणाम करूॅं, चरणों में शीश झुकाता हूॅं।
अब पार अवश्य हो जाउंगा, तुमने पतवार संभाला है।।
छोड़ कर संसार जब तू जाएगा। कोई न साथी तेरा साथ निभाएगा।।
गर प्रभु का भजन किया ना, सत्संग किया न दो घडि़याॅं।
यमदूत लगाकर तुझको, ले जायेंगे हथकडि़यां।
कौन छुड़वायेगा।। कोई न साथी.......
इस पेट भरन की खातिर, तू पाप कमाता निसदिन।
श्मशान में लकड़ी रखकर, तेरे आग लगेगी एक दिन।
खाक हो जायेगा।। कोई न साथी........
सत्संग की बहती गंगा, तू इसमें लगाले गोता।
वरना इस दुनिया से, तू जाएगा एक दिन रोता।
फेर पछताएगा।। कोई न साथी.....
क्यों कहता मेरा मेरा, यह दुनिया रैन बसेरा।
यहां कोई न रहने पाता, है चंद दिनों का डेरा।
हंस उड़ जाएगा।। कोई न साथी....
गुरुदेव चरण में निशदिन, तू प्रीत लगा ले बन्दे।
कट जायेंगे सब तेरे, ये जन्ममरण के फंदे।
पार हो जायेगा।। कोई न साथी............
खोज री पिया को निज घट में।
जो तुम पिया से मिलना चाहो। तो भटको मत जग में।।
तीरथ बर्त कर्म आचारा। ये अटकावे मग मेें।।
जब लग सतगुरु मिलें न पूरे। पड़े रहोगे अघ में।।
नाम सुधा रस कभी न पाओ। भरमो जोनी खग में।।
पंडित काजी भेख शेख सब।अटक रहे डग डग में।।
यह तो भूले विषय बास में। भर्म धसे इनकी रग रग में।।
इनके संग पिया नहिं मिलना। पिया मिले कोइ साध समग में।
बिना संत कोई भेद न पावे। वे तोहि कहें अलग में।।
जब लग संत मिलें नहिं तुम को। खाय ठगौरी तू इन ठग में।।
सतगुरु पूरे सरन गहो तो। रलो जोत जगमग में।।
भरोसो चरन कमल का तेरे ।। टेक।।
सांस सांस पर आस तुम्हारी और न काहू केरे ।
जब से जीव भया संसारी फिरे काल के फेरे।
सुधि बुधि भूल रहा निज घर की सपने हूं हरि नहि हेरे।
परम् दयाल हरी निज जनहित रूप धरा नर केरे।
जयगुरुदेव बतायो नाम निज भेद दियो घर पूरे।
जाग जाग अब क्यों नहीं जागे हरि आये बिन हेरे।
चरण कमल पर शीश चढ़ाकर भाग जगा निज लेरे।
निज चरणों का दरश करा दो गुरु, मुझे प्रेम दिवानी बना दो गुरु
जगत जाल से दूर हटा कर, मुझे शीशे में रूप दिखा दो गुरु
कुल कुटुम्ब से दूर हटा कर, मुझे सहस कंवल दिखला दो गुरु
घंट शंख सुना कर मुझको, त्रिकुटी धाम बता दो गुरु।
गगन शिखर का दरश करा कर, मुझे दसवां द्वार लखा दो गुरु।
मानसरोवर कर्म धुला कर, मुझे हंस स्वरूप बना दो गुरु।
महासुन्न होय भंवर गुफा में, मेरे काल के जाल तुड़ा दो गुरु।
सतलोक सतपुरुष दिखाकर, मुझे बीन की तान सुना दो गुरु।
अलख अगम का भेद बताकर, मुझे राधास्वामी गोद बिठा दो।
सतगुरु माफ करो तकसीर।। टेक।।
सब विधि समरथ जानि आज मैं आया तुम्हारे तीर।
पर पीड़ा हिंसा जीवन भर, लादा पाप शरीर।
पर धन परतिय लम्पट यह मन, नाचत मृग जिमि नीर।
शेखी बड़ी मान का भूखा, तेहि बिन रहत अधीर ।।
जो दे मान बड़ाई झूठी, वही गुरु वह पीर।
जिनसे अंकुश मन पर आवे, तेहि संग जाय न फीर।
तुम तो मर्दन करो मान का, गुरु मेरे रणधीर।
इससे बार-बार मन भागे, नेक धरे नहिं धीर।
पर यह जानि साथ नहिं छोडूं, कोई न तुम सा वीर।
अब तो जयगुरुदेव शरण में, यह मन पाया धीर।
कांगा से हंसा होई बिचरे पियत क्षीर तजि नीर।
सतसंग की गंगा बहती है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
फल मिलता है उस तीरथ का, कल्याण तुम्हारे चरणों में।
मैं जनम जनम तक भरमा हूॅं, तब शरण आपकी आया हूूूंॅ।
इन भूले भटके जीवों का, कल्याण तुम्हारे चरणों में।
दुखियों का दुख मिटाते हो, देव दिव्य परखाते हो।
सब आवागमन मिटाते हो, है मोक्ष तुम्हारे चरणों में।
एक बार जो दर्शन पाता हूं, बस आपका ही हो जाता हूं।
क्या गुप्त तुम्हारी प्रीति है, हैं धन्य तुम्हारे चरणों में।
जन्म का भूला शरण पडा, तब आय के तुम्हरे द्वार खड़ा।
काटो सकल बन्धन मेरा, निर्मल तुम्हारे चरणों में।
सतगुरू शान्ति वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
सुत प्यारा परिवार है जितने,सबका प्रेम बतौर है सपने,
अन्त समय कोउ नहीं अपने,
भव पार लगाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
वेद वेदान्त पुराण बतायंे, सदाचार सतसंग गहायंे,
ध्यान योग का भेद सिखायें,
ज्योति जगाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों पर हैं तुम्हरे लोचन, संकट टारन शोक विमोचन,
गुरू तुमही पापों के मोचन,
शब्द भेद बताने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
दीनों की बिनती सुन लीजै, किंकर जान के किरपा कीजै,
दर्शन अपना हरदम दीजै,
यम त्रास मिटाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
मेरे सतगुरू मुझ पर, कृपा कब करोगे।
हाले दिल से वाकिफ, दया कब करोगे।।
मेरे ही कर्मों से, पीड़ित हैं प्रभुवर।
समझ ना सकूँगा, दयालु हैं रहवर।।
दर्दे दिल से मुझ को, जुदा कब करोगे।। मेरे....
अक्स है स्वामी का, हममें उजागर।
दया मई किरन का, है खेल नरवर।।
मतलब की हद से अलग कब करोगे।। मेरे...
तेरी दिव्यता से है, अनंत प्रकासित।
तेरी गन्ध से है, चराचर सुभाषित।।
अँधेरे में गुम अर्ज पे, नजर कब करोगे।। मेरे....
कोटि विप्र बधिकों को, बक्सा है दाना।
रखी ‘नाम’ की लाज, जानत जहाना।।
सुमेरों में दबी आह पे, श्रवण कब करोगे।। मेरे..
दुन्दुभि सुनि मेरी ताला दे भाजत नरका।
सकल पापी किनका, है दरिन्दा जगत का।।
पापियों के नृपति पर, मेहर कब करोगे।। मेरे...
खाली दरबार से कभी, गया ना सवाली।
महफिल की रौनक, काविज है आली।।
नाजुक कली की कभी पीर सुन सकोगे।। मेरे...
जयगुरूदेव के मर्तबे का दूजा शानी।
अनन्तों भुवन में, दूजा ना जानी।।
भटकती सुर्त को पावन बना दोगे तो क्या होगा?
न समरथ तुम सदृश कोई है आया दृष्टि में मेरे।
शरण में इससे आया हूॅ बचा लोगे तो क्या होगा।
तुम्हारे द्वार से कोई कभी खाली नहीं जाता।
मेरी झोली भी भर करके उठा दोगे तो क्या होगा।
दयालु दीन बन्धु नाम तेरे लोग कहते हैं।
दया कर तुच्छ सेवक यदि बना लोगे तो क्या होगा।
जानता हूं कि उसके योग्य भी मैं हूं नहीं स्वामी।
हो पारस लौह को कंचन बना दोगे तो क्या होगा।
बहुत बीती रही थोड़ी वो यह भी जाने वाली है।
उस अन्तिम स्वांस लौं अपना बना दोगे तो क्या होगा।
मोको कहां ढूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में।। टेक।।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मन्दिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।। 1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपवास में।
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं योग सन्यास में ।। 2।।
नहीं प्राण में नहीं पिंड मंे, न ब्रह्माण्ड आकाश में।
ना मैं भृकुटि भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरत मिल जाऊं, एक पल की हि तलाश में।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में ।। 4।।
मेरा कोई न सहारा बिन तेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
तुम भक्तन के हितकारी मैं आया शरण तुम्हारी।ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मन्दिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।। 1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपवास में।
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं योग सन्यास में ।। 2।।
नहीं प्राण में नहीं पिंड मंे, न ब्रह्माण्ड आकाश में।
ना मैं भृकुटि भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरत मिल जाऊं, एक पल की हि तलाश में।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में ।। 4।।
मेरा कोई न सहारा बिन तेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
काटो जन्म मरण के फेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
मेरे डोले भंवर बिच नैया प्रभु बन जाओ आप खिवैया।
मेरी तुम्हीं सांझ सबेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
तुम युग-युग अन्दर आये, मोह नींद से जीव जगाए।
काटो जन्म मरण के फेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
हम अधम जीव अभिमानी, तेरी भक्ति ना हमने जानी।
मैंने किये हैं पाप घनेरे, गुरुदेव दयालु मेरे।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
उन हकीमों ने कहा यों बोलकर। कहते थे दावे किताबे खोलकर।
यह दवा हरगिज न खाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी।
जर सिकन्दर का यहीं सब रह गया। मरते दम लुकमान भी ये कह गया।
यह घड़ी हरगिज न टाली जायेगी। बिना मुहूरत के उठाली जाएगी।
ऐ मुसाफिर क्यों बसरता है यहां। यह किराए पर मिला तुमको मकां।
कोठरी खाली करा ली जाएगी, बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
होगा जम लोक में जब जब तेरा हिसाब। कैसे मुकरोगे बताओ ऐ जनाब।
जब बही तेरी निकाली जाएगी। बिन मुहूरत के उठाली जायेगी।
जब तेरी डोली निकाली जायेगी। बिन मुहूरत के उठाली जाएगी।
मन लागो मेरो यार फकीरी में।
जो सुख पायो नाम भजन में, सो सुख नाहिं अमीरी में।
भला बुरा सबकी सुन लीजे, कर गुजरान गरीबी में।
प्रेम नगर में रहनि हमारी,भलि बनि आयी सबूरी में।
हाथ में कुन्डी बगल में सोटा, चारों दिशा जगीरी में।
आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहां फिरत मगरूरी में।
कहे कबीर सुना भई साधो, साहब मिले सबूरी में।
इतनी शक्ति मुझे दो मेरे सतगुरु, तेरी भक्ति में खुद को मिटाता चलूं।
चाहे राहों में कितनी मुसीबत पड़े, फिर भी तेरा दिया गीत गाता चलूं।
दूसरों के मदद की जरूरत नहीं, मुझको केवल तुम्हारी मदद चाहिए।
डगमगाये न मेरे कदम राह में, नाम तेरे का डंका बजाता चलूं।
नाव बोझिल मेरे पूर्व के पाप से, सो न जाऊं यही डर सताता मुझे।
चाह मुझको नहीं धर्म वा अर्थ की, काम व मोक्ष की भी जरूरत नहीं।
धूल चरणों की मिलती रहे उम्र भर, तेरी महिमा निरन्तर सुनाता रहूं।
इतना वरदान दे दो मेरे देवता, खुद जगूं और जगत को जगाता चलूं।
मेरे जैसे अनेकों मिलेंगे तुम्हें, पर हमारे लिए तो तुम्हीं एक हो।
वैसे उलफत की मस्ती रहे हर घड़ी, तेरे कदमों में सिर को झुकाता चलूं।
मुझको गैरों के रिस्तों से क्या वास्ता, सिर्फ रिस्ता तुम्हारा निभाता चलूं। इतनी।
मन तू भजो गुरु का नाम। टेक।
दया मेहर से नर तन पाया, मत करना अभिमान।
इक दिन खाली पड़ा रहेगा, जाई बसे षमषान।। मन तू...
जो धन तुझको दिया गुरु ने, इससे कर कुछ काम।
अन्त समय यूं ही लुट जाएगा, संग न जाई छदाम।। मन तू..
यह संसार रैन का सुपना, आय किया विश्राम।
चार दिना के संगी सब हैं, अन्त न आवें काम।। मन तू...
तते चेत करो सतसंगत, भजन करो आठो याम।
यही भजन तेरे संग चलेगा, पावेगा आराम।। मन तू...
दया मेहर सतगुरु से लेकर, चलो त्रिकुटी धाम।
काल करम से बंधन छूटे, मिले पुरुश सतनाम।। मन तू..
धाम अपने चलो भाई। पराये देश क्यों रहना।।
काम अपना करो जाई। पराये काम नहिं फसना।।
नाम गुरु का सम्हाले चल। यही है दाम गठ बंधना।।
जगत का रंग सब मैला। धुला ले मान यह कहना।।
भोग संसार कोई दिन के। सहज में त्यागते चलना।।
सरन सतगुरु गहो दृढ़ कर। करो यह काज पिल रहना।।
सुरत मन थाम अब घट में। पकड़ धुन ध्यान घर गगना।।
फंसे तुम जाल में भारी। बिना इस जुक्ति नहीं खुलना।।
गुरु अब दया कर कहते। मान यह बात चित धरना।।
भटक में क्यों उमर खोते। कहीं नहिं ठीक तुम लगना।।
बसो तुम आय नैनन में। सिमट कर एक यहां होना।।
दुई यहां दूर हो जावे। दृष्टि ज्योति में धरना।
श्याम तजि सेत को गहना। सुरत को तान धुन सुनना।।
बंक के द्वार धंस बैठो। तिरकुटी जाय कर लेना।।
सुन्न चढ़ जा धसो भाई। सुरत से मानसर न्हाना।।
महासुन चैक अंधियारा। वहां से जा गुफा बसना।।
लोक चैथे चलो सज के। गहो वहां जाय धुन बीना।।
अलख और अगम के पारा। अजब एक महल दिखलाना।।
वहीं जाय स्वामी से मिलना। हुआ मन आज अति मगना।।
तुम नाम जपन क्यों छोड़ दिया।
क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा, सत्य बचन क्यों छोड़ दिया।
झूठे जग में जी ललचा कर, असल वतन क्यों छोड़ दिया।
कौड़ी को तो खूब सम्हाला, लाल रतन क्यों छोड़ दिया।
जिन सुमरिन से अति सुख पावे तिन सुमरिन क्यों छोड़ दिया।
खालस एक सतगुरु भरोसे, तन मन धन क्यों न छोड़ दिया।
कर ले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिन्दगानी में।
मेहमान जवानी जाती है, फिर लौट कभी नहीं आती है।
हे मूढ़ इसे मत खो देना, तू किस्से और कहानी में। कर ले..
सौभाग्य यह नर तन पाई है ,बड़े भाग जवानी आई है।
भगवान इसी में मिलते हैं ,क्यों ढूंढे पत्थर पानी में।
तू इससे खोज गुरु की कर ,मिल जायें तो न किसी से डर।
गुरु ही सब कुछ के दाता हैं ,सुन ले क्या कहते बानी में।
क्यों इसको पाकर फूल रहा निज कर्तव्यों को भूल रहा।
इन भोगों से मुख मोड़ देख, फिर फर्क मूर्ख क्या ज्ञानी में।
ज्ञानी ईश्वर का प्यारा है, सेवक गुरु भक्त दुलारा है।
जो गुरु कहते हैं मान उसे, कर भक्ति इस मर्दानी में।
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, क्यों मोह निशा में सोवत है।
जो सोवत है वह खोवत है, जो जागत है वो पावत है।
तू नींद से अंखियां खोल जरा, गुरुदेव से अपने नेह लगा।
यह प्रीत करन की रीति नहीं, गुरु जागत हैं तू सोवत है।
अनमोल मिला यह तन, गिन कर स्वांसों की पूंजी पाया।
इसमें कुछ कार्य करो अपना तू व्यर्थ समय क्यों खोवत है।
उत देख समाधि गुरु की टूटी, भक्तों ने दर्शन पायां।
तू आलस में क्यों पड़ा हुआ अपने हित की नहीं सोचत है।
बालापन तरुण अवस्थायंे, तू गफलत में बर्बाद किया।
सुध आज नहीं यदि करता है, तो नाव तुम्हारी डूबत है।
गुरु जयगुरुदेव जगाय रहे प्यारे उठ कार्य करो अपना।
यदि आज न काज किया अपना, फिर कर्मभार सिर ढोवत है।
कहें जयगुरुदेव पुकार, जमाना बदलेगा।
सुनते जाना सभी नर-नारि, जमाना बदलेगा।।
छोटे-बडे़ जितने पद-अधिकारी, सब कोई होंगे शाकाहारी।
बन्द हो जाएगा मांसाहार, जमाना बदलेगा।।
मांस, मछली, अण्डा जो सेवन करेंगे, ताड़ी, शराब, भांग-गांजा पियेंगे।
उनका पद छीन लेगी सरकार, जमाना बदलेगा।।
एम.पी., एम.एल.ए. और मंत्री, मिनिस्टर, सभी लोग होंगे शाकाहारी कट्टर।
बन्द होगा सभी दुराचार, जमाना बदलेगा।।
विदेशी बैंक में जो धन हैं छिपाए, वापस छिहत्तर सन् तक लायें।
नहीं पछतायेंगे सिर मार, जमाना बदलेगा।।
बन्द हो जाये हड़ताल, तोड़फोड़, आन्दोलन, बन्द हो जाये परिवार नियोजन।
बदल जाएगा सभी कारोबार, जमाना बदलेगा।।
नग्न सिनेमें बन्द किए जाएंगे, पुलिस सिपाही वेतन तीन सौ पायेंगे।
सभी बन्द हो चोरी, व्यभिचार, जमाना बदलेगा।।
दिल्ली से राजधानी हटेगी, यू.एन.ओ. भारत में चलेगी।
निर्णय लेने आएगा संसार, जमाना बदलेगा।।
राष्ट्रभाषा होगी संस्कृत और हिन्दी, रिश्वतखोरी पे लग जाएगी पाबंदी।
फैल जाएगा सबमें सदाचार, जमाना बदलेगा।।
कृषकों के कर्ज माफ हो जाएंगे, प्राइमरी अध्यापक वेतन तीन सौ पायेंगे।
होगा बच्चों में भारी सुधार, जमाना बदलेगा।।
बन्द हो जाएगा गऊओं का कटना, कोई नहीं होगी अनैतिक घटना।
मांस-मदिरा का बन्द हो बाजार, जमाना बदलेगा।।
काॅलेज से निकल छात्र नौकरी को पायेंगे, वृद्ध व अपाहिज पैसा राजकोष से पायेंगे।
सुखी होगा सभी परिवार, जमाना बदलेगा।।
आठ रूपया रोज मजदूरी मिलेगी, राष्ट्रपति चुनाव सीधे जनता करेगी।
जो कि हैं देश के कर्णधार, जमाना बदलेगा।।
सत्य और अहिंसा की होड़ लग जाएगी, चोरी, ठगी, झूठ की निशानी मिट जाएगी।
सब हों पूर्ण निरामिषहार, जमाना बदलेगा।।
साधन, भजन की सब करेंगे कमाई, मांसाहारियों की हो जाएगी सफाई।
वर्षा, सूखा पडे़गा अकाल, जमाना बदलेगा।।
परजा बहुत मरेगी जग में, लाशें पड़ी सडेंगी घर-घर में।
उठाने वाले मिलेंगे न यार, जमाना बदलेगा।।
पूरब-पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, छिड़े लड़ाई आए दुर्दिन।
भारी संख्या में होगा नरसंहार, जमाना बदलेगा।।
अन्न का दाना नहीं मिलेगा, टैक्स अभी और ज्यादा बढे़गा।
धर्म जल्दी से लो अब धार, जमाना बदलेगा।।
सुनते जाना सभी नर-नारि जमाना बदलेगा।
कहैं जयगुरुदेव पुकार, जमाना बदलेगा।
जय गुरु देव जय गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव । टेक।
मेरे माता पिता गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
सब देवन के देव गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
तिनके चरण कमल मन सेव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
जीव काज जग आये गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
अपना भेद बताये गुरु देव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
सत्य स्वरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
अलख अरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
अगम स्वरूपी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
पुरुष अनामी रूप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
सबके स्वामी आप गुरु देव, जय गुरुदेव जय जय गुरु देव।
उनकी शरण मेरे मन लेव, जय गुरु देव जय जय गुरु देव।
कोटि-कोटि करूं वन्दना, अरब खरब परणाम।
चरण कमल विसरूं नहीं, जय गुरु देव अनाम।।
बता दो प्रभु तुमको पाउं मैं कैसे? विमुख होके सन्मुख, अब आउं मैं कैसे?
विषय वासनायें निकलती नहीं हैं, ये चंचल चपल मन मनाउं मैं कैसे?
कभी सोचती तुमको रोकर पुकारूं, पर ऐसा हृदय को बनाउं मैं कैसे?
प्रबल है अहंकार साधन न संयम, ये अज्ञान अपना मिटाउं मैं कैसें?
कठिन मोह माया में अतिशय भ्रमित हूं, गुरु बिना दया पार पाउ मैं कैसे?
हृदय दिव्य आलोक से जो विमल हो, विनय किस तरह की सुनाउ मैं कैसे?
दयामय तुम्हीं मुझ पतित को सम्हारो, मैं कितनी पतित हूं दिखाउं मैं कैसे?
बज रहा काल का डंका, कोई बचने न पायेगा।
बचेगा साधुजन कोई जो संत से लव लगायेगा।
बचेंगे सत्य का डंका है जिसने हाथ गह पकड़ा।
काल विश्वास धाती और झूठों को चबायेगा।
बचेंगे वे जो पर उपकार में, तन धन लगायेंगे।
बचेगा अब न अन्यायी, जो जीवों को सतायेगा।
आज वह एक भी उस काल के मुख से न बच सकता।
दीन जीवों की खलड़ी नोच कर खाया जो खायेगा।
मांस खोरों व मदिरा पान करने वालों, सुन लेना।
तुम्हारा मांस अब कोई गीध कौवे, न खायेगा।
बचेंगे वे भरोसा जिनको, मेहनत की कमाई का।
बचेगा वह नहीं हक गैर का जो छीन खायेगा।
बचेगा साधु जिसने इन्द्रियों को साध रखा है।
बहिर मुख इन्द्रियों का दास अपना सब लुटायेगा।
बचेगा वह शरण पूरे गुरु की, जिसने धारण की।
दया सागर मेरे गुरुदेव, अब मुझको बचा लेना।
बचाने वाला पाकर क्यों भटकने कोई जायेगा।
मिलता है सच्चा सुख केवल, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
यह बिनती है पल पल छिन-छिन, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों मेें।
चाहे बैरी कुल संसार बने, चाहे जीवन मुझ पर भार बने।
चाहे मौत गले का हार बने,रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
भगवान तुम्हारे चरणों में, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
चाहे संकट ने मुझे घेरा हो, चाहे चारों तरफ अंधेरा हो।
पर मन नहीं डगमग मेरा हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
चाहे अग्नि में मुझे जलना पडे़। चाहे कांटों पर मुझे चलना पड़े।
चाहे छोड़ के देश निकलना पडे़, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
जिव्हा पर तेरा नाम रहे, यह याद सुबह और शाम रहे।
मेरी निष्ठा आठों याम रहे, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।
भगवान तुम्हारे चरणों में, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
गुरू चरणों में अपने लगा लीजै। मेरे भाग्य को स्वामी जी जगा दीजै।
मो सम पापी जगत कोउ नाहीं, मेरे पापों की गठरी जला दीजै।
काम क्रोध मद लोभ सतावे, इन दुष्टों को स्वामी जी भगा दीजै।
काल और माया हमें भरभावे, इन दोउ से प्रभु जी बचा लीजै।
तुम्हरे दरश की ये अंखिया हैं प्यासी, दर्शन देके प्यास बुझा दीजै।
बैन सुनन को श्रवण मेरे व्याकुल, अमृत भरी बाणी सुना दीजै।
उड़ जा रे पंछी, ये अपना देश नहीं बेगाना।
इत उत सदा घूमता डोला, करता मेरा तेरा।
बहुत डार पर किया बसेरा, बीते शाम सवेरा।
शांति न तिल भर अब लौं पाये, लगा न ठीक ठिकाना।
समझ रहा है जिसको अपने होंगे वही पराये।
तुझसे सगरे घृणा करेंगे, पास न कोई आये।
तन घन शक्ति हीन परबस कर, मीज मीज पछताना।
जिस नगरी में करे बसेरा, तेरी नहीं पराई।
इसका मालिक एक दिन तुमको, सोटन मार भगाई।
उस दिन रक्षक कोई न होगा, फिर रो रो यह कहना।
कृपा किया गुरुदेव ने तुम पर, दे दिया राह रकाना।
अब भी चेतो चढ़ो अधर में सच्चा जहाँ ठिकाना।
जयगुरुदेव वचन मानो अब नहिं पीछे पछताना।
देख सामने स्वेत बिन्दु में सतगुरु दियो निशाना।
वही राह है प्रभु मिलन की पंख बिना उड़ जाना।
निश्चय एक दिन पहुंच आयेगा अपने घर सच माना।
कब तक रहोगे रूठे, बिनती सुनो हमारी,
कुछ तो हमें बता दो, क्या भूल है हमारी।
सब लोक लाज छोड़ा, एक गुरु से नाता जोड़ा,
मुख मोड़ आप बैठे, बिगड़ी दशा हमारी।
पापी हृदय पिघल कर, आंखों से निकल आया,
इन आंसुओं की माला, लो भेंट है तुम्हारी।
पतितों को तारते हो, पापों की क्षमा करके,
क्यों हो तू गुरुवर रूठे, आयी हमारी बारी।
मैं भिक्षु हूॅ तुम्हारा, दाता हो स्वामी मेरे,
खाली न मुझको भेजो, होगी हंसी तुम्हारी।
मेहर की नजर करो मेरी ओर, दया की नजर करो मेरी ओर।
निशि दिन तुम्हें निहारूं सतगुरु, जैसे चन्द्र चकोर।
जानू न कौन भूल हुई तन से, लियो हमसे मुख मोड़।
बालक जानि चूक बिसराओ, आया शरण अब मैं तोर।
सदा दयालु स्वभाव तुम्हारा, मोरि बेरिया कस भयो कठोर।
शरणागत की लाज न राखो, मोसो पतित अब जाये केहि ओर।
अबकी बार उबार लेव जो, फिर न धरब पग यहि मगु ओर।
सतगुरू सतनाम, तुमको लाखों प्रणाम।
कोटिन सूरज चांद सितारे, रोम रोम में करे उजारे।
सत पुरूष करतार तुमको लाखों प्रणाम।।
अरबों सूरज चांद सितारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अलख पुरूष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।।
खरबों सूरज चांद सितारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अगम पुरूष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।
नील नील शशि भानु व तारे, रोम-रोम में करे उजारे।
अनामी पुरुष करतार, तुमको लाखों प्रणाम।।
जयगुरुदेव दयाल, तुमको लाखों प्रणाम।।
गुरूदेव तुम्हारे चरणों में, सतकोटि प्रणाम हमारा है।
मेरी नैया पार लगा देना, कितनों को पार उतारा है।
मैं बालक अबुध तुम्हारा हूॅं, तुम समरथ पिता हमारे हो।
मुझे अपनी गोद बिठा लेना, दाता लो भुजा पसारा है।
यद्यपि संसारी ज्वालायें, हम पर प्रहार कर जाती हैं।
पर शीतल करती रहती है, तेरी शीतल अमृत धारा है।।
जब आंधी हमें हिला देती, ठंडी जब हमें कंपा देती।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की, दे जाती हमें सहारा है।।
कुछ भुजा उठाकर कहते हो, कुछ महामंत्र सा पढ़ते हो।
गद्-गद् हो जाता हूं भगवन, मिल जाता बड़ा सहारा है।
इस मूर्ति माधुरी की झांकी, यदि सदा मिला करती स्वामी।
सौभाग्य समझते हम अपना, कौतूहल एक तुम्हारा है।।
मैं बारम्बार प्रणाम करूॅं, चरणों में शीश झुकाता हूॅं।
अब पार अवश्य हो जाउंगा, तुमने पतवार संभाला है।।
छोड़ कर संसार जब तू जाएगा। कोई न साथी तेरा साथ निभाएगा।।
गर प्रभु का भजन किया ना, सत्संग किया न दो घडि़याॅं।
यमदूत लगाकर तुझको, ले जायेंगे हथकडि़यां।
कौन छुड़वायेगा।। कोई न साथी.......
इस पेट भरन की खातिर, तू पाप कमाता निसदिन।
श्मशान में लकड़ी रखकर, तेरे आग लगेगी एक दिन।
खाक हो जायेगा।। कोई न साथी........
सत्संग की बहती गंगा, तू इसमें लगाले गोता।
वरना इस दुनिया से, तू जाएगा एक दिन रोता।
फेर पछताएगा।। कोई न साथी.....
क्यों कहता मेरा मेरा, यह दुनिया रैन बसेरा।
यहां कोई न रहने पाता, है चंद दिनों का डेरा।
हंस उड़ जाएगा।। कोई न साथी....
गुरुदेव चरण में निशदिन, तू प्रीत लगा ले बन्दे।
कट जायेंगे सब तेरे, ये जन्ममरण के फंदे।
पार हो जायेगा।। कोई न साथी............
खोज री पिया को निज घट में।
जो तुम पिया से मिलना चाहो। तो भटको मत जग में।।
तीरथ बर्त कर्म आचारा। ये अटकावे मग मेें।।
जब लग सतगुरु मिलें न पूरे। पड़े रहोगे अघ में।।
नाम सुधा रस कभी न पाओ। भरमो जोनी खग में।।
पंडित काजी भेख शेख सब।अटक रहे डग डग में।।
यह तो भूले विषय बास में। भर्म धसे इनकी रग रग में।।
इनके संग पिया नहिं मिलना। पिया मिले कोइ साध समग में।
बिना संत कोई भेद न पावे। वे तोहि कहें अलग में।।
जब लग संत मिलें नहिं तुम को। खाय ठगौरी तू इन ठग में।।
सतगुरु पूरे सरन गहो तो। रलो जोत जगमग में।।
भरोसो चरन कमल का तेरे ।। टेक।।
सांस सांस पर आस तुम्हारी और न काहू केरे ।
जब से जीव भया संसारी फिरे काल के फेरे।
सुधि बुधि भूल रहा निज घर की सपने हूं हरि नहि हेरे।
परम् दयाल हरी निज जनहित रूप धरा नर केरे।
जयगुरुदेव बतायो नाम निज भेद दियो घर पूरे।
जाग जाग अब क्यों नहीं जागे हरि आये बिन हेरे।
चरण कमल पर शीश चढ़ाकर भाग जगा निज लेरे।
निज चरणों का दरश करा दो गुरु, मुझे प्रेम दिवानी बना दो गुरु
जगत जाल से दूर हटा कर, मुझे शीशे में रूप दिखा दो गुरु
कुल कुटुम्ब से दूर हटा कर, मुझे सहस कंवल दिखला दो गुरु
घंट शंख सुना कर मुझको, त्रिकुटी धाम बता दो गुरु।
गगन शिखर का दरश करा कर, मुझे दसवां द्वार लखा दो गुरु।
मानसरोवर कर्म धुला कर, मुझे हंस स्वरूप बना दो गुरु।
महासुन्न होय भंवर गुफा में, मेरे काल के जाल तुड़ा दो गुरु।
सतलोक सतपुरुष दिखाकर, मुझे बीन की तान सुना दो गुरु।
अलख अगम का भेद बताकर, मुझे राधास्वामी गोद बिठा दो।
सतगुरु माफ करो तकसीर।। टेक।।
सब विधि समरथ जानि आज मैं आया तुम्हारे तीर।
पर पीड़ा हिंसा जीवन भर, लादा पाप शरीर।
पर धन परतिय लम्पट यह मन, नाचत मृग जिमि नीर।
शेखी बड़ी मान का भूखा, तेहि बिन रहत अधीर ।।
जो दे मान बड़ाई झूठी, वही गुरु वह पीर।
जिनसे अंकुश मन पर आवे, तेहि संग जाय न फीर।
तुम तो मर्दन करो मान का, गुरु मेरे रणधीर।
इससे बार-बार मन भागे, नेक धरे नहिं धीर।
पर यह जानि साथ नहिं छोडूं, कोई न तुम सा वीर।
अब तो जयगुरुदेव शरण में, यह मन पाया धीर।
कांगा से हंसा होई बिचरे पियत क्षीर तजि नीर।
सतसंग की गंगा बहती है, गुरुदेव तुम्हारे चरणों में।
फल मिलता है उस तीरथ का, कल्याण तुम्हारे चरणों में।
मैं जनम जनम तक भरमा हूॅं, तब शरण आपकी आया हूूूंॅ।
इन भूले भटके जीवों का, कल्याण तुम्हारे चरणों में।
दुखियों का दुख मिटाते हो, देव दिव्य परखाते हो।
सब आवागमन मिटाते हो, है मोक्ष तुम्हारे चरणों में।
एक बार जो दर्शन पाता हूं, बस आपका ही हो जाता हूं।
क्या गुप्त तुम्हारी प्रीति है, हैं धन्य तुम्हारे चरणों में।
जन्म का भूला शरण पडा, तब आय के तुम्हरे द्वार खड़ा।
काटो सकल बन्धन मेरा, निर्मल तुम्हारे चरणों में।
सतगुरू शान्ति वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
सुत प्यारा परिवार है जितने,सबका प्रेम बतौर है सपने,
अन्त समय कोउ नहीं अपने,
भव पार लगाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
वेद वेदान्त पुराण बतायंे, सदाचार सतसंग गहायंे,
ध्यान योग का भेद सिखायें,
ज्योति जगाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों पर हैं तुम्हरे लोचन, संकट टारन शोक विमोचन,
गुरू तुमही पापों के मोचन,
शब्द भेद बताने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
दीनों की बिनती सुन लीजै, किंकर जान के किरपा कीजै,
दर्शन अपना हरदम दीजै,
यम त्रास मिटाने वाले, तुमको लाखों प्रणाम।
भक्तों के रखवाले, तुमको लाखों प्रणाम।
मेरे सतगुरू मुझ पर, कृपा कब करोगे।
हाले दिल से वाकिफ, दया कब करोगे।।
मेरे ही कर्मों से, पीड़ित हैं प्रभुवर।
समझ ना सकूँगा, दयालु हैं रहवर।।
दर्दे दिल से मुझ को, जुदा कब करोगे।। मेरे....
अक्स है स्वामी का, हममें उजागर।
दया मई किरन का, है खेल नरवर।।
मतलब की हद से अलग कब करोगे।। मेरे...
तेरी दिव्यता से है, अनंत प्रकासित।
तेरी गन्ध से है, चराचर सुभाषित।।
अँधेरे में गुम अर्ज पे, नजर कब करोगे।। मेरे....
कोटि विप्र बधिकों को, बक्सा है दाना।
रखी ‘नाम’ की लाज, जानत जहाना।।
सुमेरों में दबी आह पे, श्रवण कब करोगे।। मेरे..
दुन्दुभि सुनि मेरी ताला दे भाजत नरका।
सकल पापी किनका, है दरिन्दा जगत का।।
पापियों के नृपति पर, मेहर कब करोगे।। मेरे...
खाली दरबार से कभी, गया ना सवाली।
महफिल की रौनक, काविज है आली।।
नाजुक कली की कभी पीर सुन सकोगे।। मेरे...
जयगुरूदेव के मर्तबे का दूजा शानी।
अनन्तों भुवन में, दूजा ना जानी।।
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